बेनजीर और भारत : सांच को आंच क्या
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बेनजीर की हत्या के बाद भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि वह हमारे उपमहाद्वीप की प्रमुख नेता थीं, जिन्होंने भारत-पाक संबंधों को सुधारने का प्रयास किया। यह दुखद है कि तीन बच्चों की मां की निर्मम हत्या हुई। हम सभी दुखी हैं। इसके बावजूद सत्य सामने लाना होगा। प्रेस द्वारा कही गई बात हमेशा सच नहीं होती। कश्मीर में भारत विरोधी आतंकवाद भुट्टो के संरक्षण में ही पनपा। वहां हिंदुओं का सफाया करवाने में उनका हाथ था। ध्यान देने की बात है कि जिस जिस ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया, वही उसका शिकार भी हुआ। नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फार कांफ्लिक्ट मैनेजमेंट के इक्जिक्यूटिव डायरेक्टर अजय साहनी कहते हैं कि वह जिहाद को बढ़ावा देने की कड़ी थीं। उन्होंने खुलेआम उग्रवादियों को उकसाया। भारत से उनके संबंधों के बाबत एक भी सकारात्मक पहलू नहीं मिला है। वह कश्मीरी जनता को जगमोहन और फिर वहां के गवर्नर को टुकड़े-टुकड़े करने की राय दे रही थीं। बेनजीर की देखरेख में तालिबान बना और पाकिस्तान की इंटेलिजेंस सर्विस की मदद से अफगानिस्तान में फैला। बाद में लादेन को संरक्षण मिला। जिन्हें बेनजीर ने शह दी संभवत: उन्हीं लोगों ने उन्हें मार डाला। उन्होंने आणविक शक्ति का प्रयोग करने की धमकी देकर जानबूझ कर भारत-पाक के बीच तनाव बढ़ाया। यह माहौल तब जरूरत से ज्यादा बिगड़ गया जब उन्होंने अपने पिता जुल्फिकार भुट्टो की एक हजार वर्ष लंबी लड़ाई की बात को दुहराया। जवाब में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लोकसभा में उनकी बात का मजाक बनाया और कहा, जो लोग कुछ घंटे भी नहीं लड़ पाएंगे वे हजारों वर्ष की लड़ाई का दावा कर रहे हैं। अपनी मौत से ठीक पहले के भाषण में उन्होंने भारत को पाकिस्तान के लिए एक बड़ा खतरा बताया और कहा कि यदि वे सत्ता में आईं तो इस बाबत कड़ाई से निपटेंगी। मैंने बेनजीर भुट्टो का दो बार इंटरव्यू लिया। पिछली बार, जब वह दुबारा सत्ता में आने के लिए चुनाव प्रचार कर रही थी, मैंने पहला प्रश्न कश्मीर के बारे में किया। उन्होंने कहा कि आपको कश्मीर पर पाकिस्तानी नजरिया समझना पड़ेगा। यदि बंटवारे के आधार से हम देखें तो कश्मीर घाटी का जो मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है वहां हिंदू पंडितों ने मुसलमानों का शोषण किया। उन्हें डराया,धमकाया और आज उन्हें हम उनका हक दिला रहे हैं। इस तरह कश्मीर पाकिस्तान के साथ होना चाहिए। क्या सिर्फ यही कारण है? बेनजीर ने कहा- नहीं, पाकिस्तान आज तक भारत के हाथों बांग्लादेश की शर्मनाक हार नहीं भुला पाया है। जिया का सत्ता में आना इस शर्मनाक पराजय का परिणाम था। मैंने पूछा, लेकिन जिया ने आपके पिता को फांसी दी। बेनजीर ने उत्तर दिया, हां मैं उनसे नफरत करती हूं और अल्लाह ने उसके लिए सजा दे दी है (जिया की हवाई दुर्घटना में मौत) लेकिन जिया ने एक काम सही किया। उन्होंने अलगाववादी ताकतों को कश्मीर और पंजाब में समर्थन देकर एक तरह का युद्ध शुरू कर दिया। इसका मुख्य उद्देश्य था भारत से बदला चुकाना। मैंने पूछा, पाकिस्तान के परमाणु बम का क्या हुआ? वह मेरे पिता का किया गया कार्य है, उन्होंने गर्व से कहा। उन्हें (पिता को) यह समझ 1965 और 1971 के युद्ध में हार के बाद आई कि हम रणनीति के तहत भारत को हरा नहीं सकते। इसलिए आणविक शक्ति की योजना शुरू हुई। लेकिन क्या यह खतरनाक हथियार नहीं है। यदि यह आपके देश के ही गलत ताकतों के हाथ चला गया तो? बेनजीर ने कहा- कोई खतरा नहीं। यह भारत को डराने के लिए ही नहीं बल्कि उसके आणविक शक्ति का मुंहतोड़ जवाब है और इस्लाम धर्म की रक्षा के लिए है। -फ्रांस्वां गाटियर
(लेखक फ्रांसीसी पत्रिका ला रेव्यू डे एल इंडे के प्रधान संपादक हैं)
बेनजीर की हत्या के बाद भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि वह हमारे उपमहाद्वीप की प्रमुख नेता थीं, जिन्होंने भारत-पाक संबंधों को सुधारने का प्रयास किया। यह दुखद है कि तीन बच्चों की मां की निर्मम हत्या हुई। हम सभी दुखी हैं। इसके बावजूद सत्य सामने लाना होगा। प्रेस द्वारा कही गई बात हमेशा सच नहीं होती। कश्मीर में भारत विरोधी आतंकवाद भुट्टो के संरक्षण में ही पनपा। वहां हिंदुओं का सफाया करवाने में उनका हाथ था। ध्यान देने की बात है कि जिस जिस ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया, वही उसका शिकार भी हुआ। नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फार कांफ्लिक्ट मैनेजमेंट के इक्जिक्यूटिव डायरेक्टर अजय साहनी कहते हैं कि वह जिहाद को बढ़ावा देने की कड़ी थीं। उन्होंने खुलेआम उग्रवादियों को उकसाया। भारत से उनके संबंधों के बाबत एक भी सकारात्मक पहलू नहीं मिला है। वह कश्मीरी जनता को जगमोहन और फिर वहां के गवर्नर को टुकड़े-टुकड़े करने की राय दे रही थीं। बेनजीर की देखरेख में तालिबान बना और पाकिस्तान की इंटेलिजेंस सर्विस की मदद से अफगानिस्तान में फैला। बाद में लादेन को संरक्षण मिला। जिन्हें बेनजीर ने शह दी संभवत: उन्हीं लोगों ने उन्हें मार डाला। उन्होंने आणविक शक्ति का प्रयोग करने की धमकी देकर जानबूझ कर भारत-पाक के बीच तनाव बढ़ाया। यह माहौल तब जरूरत से ज्यादा बिगड़ गया जब उन्होंने अपने पिता जुल्फिकार भुट्टो की एक हजार वर्ष लंबी लड़ाई की बात को दुहराया। जवाब में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लोकसभा में उनकी बात का मजाक बनाया और कहा, जो लोग कुछ घंटे भी नहीं लड़ पाएंगे वे हजारों वर्ष की लड़ाई का दावा कर रहे हैं। अपनी मौत से ठीक पहले के भाषण में उन्होंने भारत को पाकिस्तान के लिए एक बड़ा खतरा बताया और कहा कि यदि वे सत्ता में आईं तो इस बाबत कड़ाई से निपटेंगी। मैंने बेनजीर भुट्टो का दो बार इंटरव्यू लिया। पिछली बार, जब वह दुबारा सत्ता में आने के लिए चुनाव प्रचार कर रही थी, मैंने पहला प्रश्न कश्मीर के बारे में किया। उन्होंने कहा कि आपको कश्मीर पर पाकिस्तानी नजरिया समझना पड़ेगा। यदि बंटवारे के आधार से हम देखें तो कश्मीर घाटी का जो मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है वहां हिंदू पंडितों ने मुसलमानों का शोषण किया। उन्हें डराया,धमकाया और आज उन्हें हम उनका हक दिला रहे हैं। इस तरह कश्मीर पाकिस्तान के साथ होना चाहिए। क्या सिर्फ यही कारण है? बेनजीर ने कहा- नहीं, पाकिस्तान आज तक भारत के हाथों बांग्लादेश की शर्मनाक हार नहीं भुला पाया है। जिया का सत्ता में आना इस शर्मनाक पराजय का परिणाम था। मैंने पूछा, लेकिन जिया ने आपके पिता को फांसी दी। बेनजीर ने उत्तर दिया, हां मैं उनसे नफरत करती हूं और अल्लाह ने उसके लिए सजा दे दी है (जिया की हवाई दुर्घटना में मौत) लेकिन जिया ने एक काम सही किया। उन्होंने अलगाववादी ताकतों को कश्मीर और पंजाब में समर्थन देकर एक तरह का युद्ध शुरू कर दिया। इसका मुख्य उद्देश्य था भारत से बदला चुकाना। मैंने पूछा, पाकिस्तान के परमाणु बम का क्या हुआ? वह मेरे पिता का किया गया कार्य है, उन्होंने गर्व से कहा। उन्हें (पिता को) यह समझ 1965 और 1971 के युद्ध में हार के बाद आई कि हम रणनीति के तहत भारत को हरा नहीं सकते। इसलिए आणविक शक्ति की योजना शुरू हुई। लेकिन क्या यह खतरनाक हथियार नहीं है। यदि यह आपके देश के ही गलत ताकतों के हाथ चला गया तो? बेनजीर ने कहा- कोई खतरा नहीं। यह भारत को डराने के लिए ही नहीं बल्कि उसके आणविक शक्ति का मुंहतोड़ जवाब है और इस्लाम धर्म की रक्षा के लिए है। -फ्रांस्वां गाटियर
(लेखक फ्रांसीसी पत्रिका ला रेव्यू डे एल इंडे के प्रधान संपादक हैं)
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